संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दौरान जहां पक्ष-विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप को लेकर जबरदस्त वाकयुद्ध चला। इस दौरान बीच-बीच में हुई शेरो-शायरी ने माहौल को हल्का कर दिया। हालांकि, इस शेरो-शायरी में भी व्यंग्य बाण छुपे हुए थे। लोकसभा में चर्चा का जवाब देते हुए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने डेढ़ घंटे के भाषण के दौरान तीन बार ऐसा किया। जबकि उधर राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने जब सदन में शेर सुनाया तो चुटकी लेते हुए सभापति जगदीप धनखड़ ने भी जवाबी शेर सुना दिया।
पीएम ने अपने संबोधन में विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए शेर पढ़ा-
ये कह-कह कर हम दिल को बहला रहे हैं
वो अब चल चुके हैं, वो अब आ रहे हैं।
लेकिन वे यहीं नहीं रुके। कुछ देर बाद उन्होंने विपक्ष को आइना दिखाने के लिए काका हाथरसी की यह लाइनें कहीं-
आगा-पीछा देखकर क्यों होते गमगीन
जैसी जिसकी भावना, वैसा दिखे सीन।
इसके बाद एक और स्थान पर प्रधानमंत्री ने दुष्यंत कुमार की ये लाइनें कह कर विपक्ष खासकर कांग्रेस पर हमला बोला। उसे पिछली चुनावी हारें याद दिलाई।
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।
दरअसल, शेरो-शायरी का यह सिलसिले एक दिन पहले ही तृणमूल कांग्रेस की सदस्य महुआ मोइत्रा ने ही शुरू कर दिया था। मंगलवार को चर्चा में हिस्सा लेते हुए उन्होंने सत्ता पक्ष पर इस प्रकार से कटाक्ष किया था-
दोपहर तक बिक गया बाजार का हर झूठ
और मैं एक सच को लेकर शाम तक बैठी रही।
बाद में जब केंद्रीय बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की बारी आई तो उन्होंने राष्ट्रकवि दिनकर की लाइनें सुनाकर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना की।
प्रण करना है सहज, कठिन है लेकिन उसे निभाना
सबसे बड़ी जांच है, व्रत का अंतिम मोल चुकाना
बुधवार को राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपना भाषण निम्न शेर के साथ खत्म किया जिसमें सरकार पर कटाक्ष था।
नजर नहीं है नजारों की बात करते हैं
जमी पर चांद-सितारों की बात करते हैं
वो हाथ जोड़कर बस्ती को लूटने वाले
भरी सभा में सुधारों की बात करते हैं…
खड़गे पिछले सदन में भी शेर सुना चुके थे इसलिए सभापति ने कहा कि आपके शेर सुनकर मुझे भी शेर याद आने लगे हैं। फिर उन्होंने सुनाया-
उम्र भर गालिब, यही भूल करता रहा
धूल चेहरे पर थी, आइना साफ करता रहा
लोकसभा में जब सीपी जोशी ने अभिभाषण पर चर्चा की शुरुआत की तो उन्होंने यह राम चरित्र मानस की ये पंक्तियां सुनाकर सरकार की दृढता को व्यक्त किया
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन नहीं जाई
राज्यसभा में विवेक ठाकुर ने गरीबों की पीड़ा व्यक्त करने के लिए गुलजार की इन लाइनों का सहारा लिया
खबर सबको थी मेरे कच्चे मकान की
फिर भी लोगों ने दुआओं में सिर्फ बरसात ही मांगी।
उन्होंने अपने भाषण में दिनकर की कविताएं भी सुनाई। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले जब भी संसद में बोलते हैं तो अपनी आधी बात कविता में ही कहते हैं। वह बोलते-बोलते मिनटों में कविता बना लेते हैं और आज भी अपनी कविता से उन्होंने सरकार को सराहा और विपक्ष को लपेटा
राष्ट्रपति जी का अभिभाषण
मजबूत करेगा भारत नेशन
विरोध करना है कांग्रेस का फैशन
इसलिए उसके विरोध में कर रहा हूं भाषण
इसके बाद अपने भाषण में कई बार उन्होंने कविता के रूप में बात रखी।
दरसअल, संसद की चर्चाओं में शेर सुनाने का चलन बहुत पुराना है। मनमोहन सिंह जब वित्त मंत्री होते थे तो वह बजट पेश करते हुए एक शेर जरूर पड़ते थे। बाद में कई और वित्त मंत्रियों ने भी इस परंपरा को जारी रखा। सिंह जब पीएम बने तो एक बार ऐसा मौका आया कि उनके और तत्कालीन प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के बीच शेरो-शायरी के जरिए ही व्यंग्य बाण