हरिद्वार।
अप्रैल भारतीय ज्ञान परम्परा संस्कार, संस्कृति एवं मानव मे मनुष्यत्व के गुण धारण करने की प्रबल पक्षधर है। भविष्य की पीढी मे संस्कार रोपण के लिए वर्तमान पीढी को संस्कार एवं संस्कृति पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। संस्कार एवं संस्कृति के बल पर भारत विश्व का नेतृत्व करने मे सक्षम हो सकता है।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के निर्देशन मे गुरुकुल कांगडी समविश्वविद्यालय द्वारा भारतीय की ज्ञान सांस्कृतिक परम्पराएं एवं प्रथाएं विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय महासम्मेलन के संस्कृत विभाग के सभागार मे आयोजित समापन सत्र के अवसर पर वैदिक विद्वानों ने युवाआे मे पुरातन भारतीय ज्ञान परम्पराए संस्कृति एवं संस्कार के प्रति अरूचि पर चिन्ता व्यक्त की। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुये विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. सोमदेव शतांशु ने माता—पिता को संस्कार की कुंजी बताते हुये सन्तान मे श्रेष्ठतम गुणों के रोपण मे माता—पिता की भूमिका को अधिक महत्व देने पर बल दिया। गर्भधान संस्कार के माध्यम से संतान मे बेहतर एवं नैतिक मूल्यों के अनुरूप गुण पैदा करने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। वातावरण एवं मनोभाव के सकारात्मक चिन्तन से श्रेष्ठ गुणों से युक्त संन्तान पैदा होती है। असाध्य बीमारियों की चिकित्सा मे भारतीय परम्पराआें एवं प्रथाआें के महत्व पर भी अनेक तार्किक प्रमाण प्रस्तुत किये। कुलसचिव प्रो. सुनील कुमार ने भारतीय व्यवस्था मे प्राचीन ज्ञान को वर्तमान वैज्ञानिक सम्पदा का केन्द्र बिन्दु बताया। उत्तराखंड की हवा तथा धूप को चिकित्सीय दृष्टि से श्वास सम्बंधी तथा जोडों के रोग मे महत्वपूर्ण बताया। उन्होने उत्तराखंड को सोलर टूरिज्म के रूप मे चिकित्सीय हब के रूप मे विकसित करने की आवश्यकता बताई।
आमंत्रित विद्वानों मे पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. वीरेन्द्र सिंह ने वर्तमान उपलब्धियों का आधार प्राचीन ज्ञान के द्वारा ही तैयार हो सकता है। हमे अपनी परम्पराआें एवं ज्ञान के महत्व को समझना पडेगा अन्यथा भविष्य की पीढी को यह ज्ञान विदेशों से आयातित करना पडे$गा। जिसके लिए नई पीढी हमे कभी माफ नही करेगी। चौ. चरण सिंह विवि मेरठ वरिष्ठ प्रोफेसर आचार्य वेदपाल ने संस्कृति से संस्कार तथा परम्पराआें से ज्ञान—विज्ञान मे सफलता प्राप्त करने की बात कही। यौगिक विद्वान प्रो. ईश्वर भारद्वाज ने कहा कि मानोचित व्यवहार के बिना व्यक्ति पशु समान है। प्रो. दिनेश भटट ने एक प्रजेन्टेशन के माध्यम से वातावरण से मनुष्य के अस्तित्व की बात कही। प्रो. विनय कुमार ने कह कि मनुष्य का निर्माण धन—सम्पदा से नही अपितु चरित्र निर्माण से बनता है। आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. एलपी पुरोहित ने बताया कि कान्फ्रेंस मे 27५ शोधपत्र व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किये गये, जबकि 35 शोध—पत्र ऑनलाईन माध्यम से प्रस्तुत किये गये। पोस्टर के माध्यम से अपने शोध—पत्र प्रस्तुत करने वाले छात्र-छात्राआें को पुरस्कृत किया गया। जिसमे एमएससी के छात्र हिमांशु शर्मा को प्रथम पुरस्कार, पीएचडी शोध छात्रा रूपाली पुंडीर को दूसरा स्थान तथा तीसरे स्थान पर नरोत्तम कुमार तथा हिमानी दीपक को संयुक्त रूप से सम्मानित किया गया। सभी पुरस्कृत छात्र-छात्राआें को प्रशस्ति—पत्र एवं नकद पारितोषिक प्रदान किया गया। पोस्टर ज्यूरी मे प्रो. नमिता जोशी, प्रो सुरेखा राणा, प्रो. सुचित्रा मलिक ने पोस्टरों का मूल्यांकन किया। जिसमें डा. निधि हांडा, डा. मंजूषा कौशिक, डा. निशा शर्मा, डा. रीना वर्मा एवं डा. बिन्दु मलिक ने सहयोग किया। इस अवसर पर प्रो. मनुदेव बंधु, प्रो. सत्यदेव निगमालंकार, प्रो. ब्रहमदेव विद्यालंकार, डा. सुनील पंवार, डा. पवन कुमार, डा. हरेन्द्र मलिक, डा. संगीता मदान, डा. बबलू वेदालंकार, डा. शिवकुमार चौहान, डा. कपिल मिश्रा, डा. एमएम तिवारी, डा. अजय मलिक, डा.अजय कुमार, डा. भगवान दास, डा. धर्मेन्द्र बालियान, हेमन्त नेगी, कुलभूषण शर्मा आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रो. एलपी पुरोहित तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. नमिता जोशी द्वारा किया गया।
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November 24, 2024